समाज और सरकार की उपेक्षा की वजह से हम घरेलू कामगार आज भी हाशिए पर रहने को मजबूर हैं। लेकिन कोरोना और लॉकडाउन हम घरेलू कामगारों के लिए बेबसी भरे एक बेहद चुनौतीपूर्ण समय के रूप में सामने आया।

इस कठिन समय में हम मौत, बीमारी, भुखमरी और लाचारी से जूझ रहे थे और शहरों में अपनी मजदूरी छोड़कर जब भूखे पेट हजारों मील पैदल चलकर अपने गांव वापस आ रहे थे तो सरकार कही नहीं थी ?

इस महामारी के दौर में जब हमारी छोटी-सी आजीविका भी चली गई और काम कराने वाले लोग हमें घृणा की नजरों से देखने लगे तो भी सरकार कही नहीं थी?

घरेलू कामगार को कोरोना के वाहक बोलकर, कई कामगारों का काम, आमदनी ख़त्म कर दी गयी और उनके ख़िलाफ़ नफ़रत फैलायी जा रही थी उस समय सरकार कहाँ थी?

Illustration by Chaitali Haldar

एक तरफ हम इन समस्याओं से जूझ रहे थे तो दूसरी तरफ सरकार ने सड़कों पर हमें परेशान करने के लिए पुलिस को खुली छूट दे रखी थी।

कोरोना महामारी के दौरान घरेलू कामगारों की मुसीबत और लाचारी सबसे ज़्यादा सामने आई। घरेलू कामगार महिलाओं को कोरोना महामारी के बहाने बेरोजगार करने, हमारी रोज़ी-रोटी का साधन छीनने जैसे अन्याय करने का काम हुआ।

महामारी के नामपर घरेलू कामगारों को काम से निकाल दिया गया। लेकिन उन्हें वापस काम में कब बुलाया जाएगा इसका किसी कामगार को इसका कोई अंदाज़ा नहीं था। उनके हाथ मासिक वेतन नहीं पहुँचा और इसके साथ ही राशन और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव भी रहा। आमतौर पर यह समाज का वो तबका था, जो अपना श्रम देकर सम्मानपूर्वक जीवन गुजर बसर करता था। पर इस महामारी ने उनको भीख मांगने जैसे माहौल में लाकर खड़ा कर दिया। जब घरेलू कामगारों को ज़िम्मेदारी ज़न-प्रतिनिधियों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी पर किसी ने भी इस तबके की तरफ़ मदद का हाथ आगे नहीं बढ़ाया।

बच्चों की शिक्षा ध्वस्त हो गई। नदियों में लाश बहती रही, श्मशान घाटों एवं कब्रिस्तानों पर लंबी कतारें, अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी, संसद सत्र में कटौती व संसद में लोगों की समस्याओं पर चर्चा के बजाय श्रमिक और जन-विरोधी कानूनों का पास होने का सिलसिला चलता रहा। एक ओर तो, देश की अर्थव्यवस्था का धराशाही होना, नदारद प्रशासन, बंद कोर्ट कचहरी एवं लोगों के प्रतिरोध पर तालाबंदी जैसी समस्याएँ हैं। वहीं दूसरी ओर, चुनाव में भीड़ के लिए छूट, कुंभ में जाने की छूट, सरकारी संस्थानों की बिक्री एवं पूंजीवादी बड़ी कंपनियों की कर्जमाफी जैसे मुद्दे हैं, जिनसे जनता जूझती रही।

इन सबके बीच वो घरेलू कामगार जो किन्हीं कारणवश शहर में बच गए थे, उनकी आजीविका की मजबूरी को समाज के संभ्रांत तबके (कोठी वाले) ने ‘आपदा में अवसर’ मानकर पूरा फायदा उठाया। उनमें से कई घरेलू कामगारों को कोठी वालों के घर में रहकर बिना रुके 24 घंटों तक काम करना पड़ा। उनकी मजदूरी बढ़ने की बजाय और कम होती गई। कोरोना महामारी के दौर में ऐसे शोषण बहुत से घरेलू कामगार लोगों के लिए असहनीय था। इनके लिए कोरोना समस्या नहीं थी, बल्कि कोठी वालों का अत्याचार, मजदूरी में कटौती, दिन-रात बिना रुके काम करवाना, घृणित निगाहें एवं क्रूरता इत्यादि समस्याएं थी।

आज भी घरेलू कामगारों की स्थिति पहले से बदतर है। बेरोज़गारी की स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है, जिससे हम अपनी जिंदगी के करीब 20 साल पीछे ही गए है। वे घरेलू कामगार, जिन्हें ‘चार छुट्टी या दिवाली पर 500 रुपए ही बोनस चाहिए।‘ – यह बोलकर लेने का हक मिला था, उस हक़ को इस महामारी ने छीन लिया। उनकी मोलभाव करने एवं अपने काम के अनुसार मज़दूरी की बात रखने की शक्ति एवं संगठनात्मिक शक्ति भी कम हुई है।

Illustration by Chaitali Haldar

2016 में नोटबंदी हुईं इसके बाद साल 2020 में कोरोना महामारी ने घरेलू कामगारों की ऐसी कमर तोड़ी कि वे आज भी इससे उभर नहीं पा रहे है। वे आज भी आर्थिक बोझ के नीचे दबे हुए है । आज युवा बच्चों या पतियों का नियमित काम नहीं है। घर चलाने का बोझ परिवार घरेलू कामगारों पर आ गया है, जो उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रही है।

घरेलू कामगारों के सामने आने वाली स्थिति और चुनौतियों को देखते हुए हमारी कई मांगें हैं। हम उचित वेतन, सप्ताह में एक दिन की छुट्टी, एक दिन में काम के निश्चित घंटे और भविष्य निधि, पेंशन, श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा आदि के आश्वासन की मांग करते हैं। घरेलू कामगारों के लिए एक नियामक हो जिससे कामगारों के साथ होने वाले अनेकों तरह के शोषण और अत्याचार पर रोक लगायी जा सके।

इसलिए घरेलू कामगारों के लिए यह जरूरी हो गया है कि, कोरोना लॉक डाउन के समय आज की परिस्थितियों में जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें एक साथ कहना, उनकी जांच करना और समस्याओं को दस्तावेज में तब्दील करके सरकार की जवाबदेही तय करना अनिवार्य है। इस कार्य में सभी की सामूहिक भूमिका अहम है। देश के कोने-कोने से विभिन्न संगठन इस तरह की जनसुनवाई कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में सहयोगी संगठन के साथ मिलकर घरेलू कामगारों के लिए राष्ट्रीय मंच  ( NPDW)  को  भी अपनी बात मनवाने के लिए सरकार पर दबाव डालना चाहिए। जगह-जगह सार्वजनिक जांच समितियां बनाकर सरकार की नीतियों की जांच करनी चाहिए। यह जांच संविधान के तहत हमारा मौलिक कर्तव्य है, जिसे करना हमारी जिम्मेदारी है  । देश के सभी लोगों को एक साथ मिलकर यह काम करना चाहिए।

Illustration by Chaitali Haldar

घरेलू कामगारों की आवाज़ें

“कोविड एक निशानी है, शोषण और अत्याचारों की”
“इज्जत, गरिमा, प्यार, आराम
हम कामगारों की यही है मांग”
“हम कामगारों का यही है नारा
कामों का दो दाम हमारा।”
“घरेलू कामगारों की यही पुकार
हमारे काम को मिले काम का  सही अधिकार।“
“घरेलू काम भी एक काम है
हमें भी कामगार का दर्जा दो दर्जा दो”
” घरेलू कामगारों के मुद्दों पर, सरकार को अपनी जांचेंगे”
“आजीविका के मुद्दे पर, सरकार को अपनी जांचेंगे”
“घरेलू कामगारों का न्यूनतम वेतन तय करो, तय करो।”
” घरेलू कामगारों के काम के घंटे तय करो, तय करो”
“हम कामगार है, गुलाम नहीं”
” हमारे साथ जो हुआ उसका हिसाब हम करेंगे”

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